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17वीं और 18वीं सदी के व्यंजनों में किकशॉ का इतिहास और महत्व

किकशॉ एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग 17वीं और 18वीं शताब्दी में एक छोटे, महत्वहीन व्यंजन या नाश्ते का वर्णन करने के लिए किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति मध्य अंग्रेजी शब्द "किकशॉ" से हुई है, जो छोटे, हल्के भोजन या नाश्ते को संदर्भित करता है। इस शब्द का उपयोग अक्सर उस व्यंजन का वर्णन करने के लिए किया जाता था जिसे साइड कोर्स या रात्रिभोज के बाद के भोजन के रूप में परोसा जाता था।

किकशॉ आमतौर पर बचे हुए सामग्री या भोजन के स्क्रैप के साथ बनाए जाते थे, और उन्हें अक्सर अनौपचारिक समारोहों या पार्टियों में परोसा जाता था। उन्हें विनम्र या निम्न प्रकार का भोजन माना जाता था, और उन्हें मुख्य भोजन या गंभीर भोजन नहीं माना जाता था। इसके बजाय, उन्हें भोजन का आनंद लेने और दूसरों के साथ मेलजोल बढ़ाने के एक हल्के-फुल्के और अनौपचारिक तरीके के रूप में देखा गया। 17वीं और 18वीं शताब्दी में लोकप्रिय किकशॉ के कुछ उदाहरणों में मांस या सब्जियों से भरी छोटी पाई, फल या क्रीम से भरी मीठी पेस्ट्री, और शामिल हैं। बची हुई सब्जियों से बना सरल सलाद। इन व्यंजनों को अक्सर ब्रेड या क्रैकर्स के साथ परोसा जाता था, और उनका उद्देश्य दूसरों के साथ मेलजोल रखते हुए जल्दी और आसानी से खाया जाना था। कुल मिलाकर, किकशॉ 17वीं और 18वीं सदी के व्यंजनों की एक सामान्य विशेषता थी, और उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन। उन्हें औपचारिक या विस्तृत भोजन की आवश्यकता के बिना, लोगों को एक साथ लाने और अच्छे भोजन और कंपनी का आनंद लेने के एक तरीके के रूप में देखा गया था।

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